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PEN 2 : वजूद

साहिलों ने भी कभी शिकस्त की थी, सागर पार जाने की ।

दर्या तो था दो गज पर, हौसलों ने मात दि थी ॥

रुकस्त ना हुआ कभी, और न मंजिल पायी उसने ।

कारवां भी न बन सका, और ना ही दुवा किसी की पायी उसने ॥

दोस्त मेरे,

बिछडने का गम तो, खैरात में ही पाया है तुमने ।

वजूद की बात है, कौन पार हुआ और कौन धस गया ॥

-अनुप

 

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