साहिलों ने भी कभी शिकस्त की थी, सागर पार जाने की ।
दर्या तो था दो गज पर, हौसलों ने मात दि थी ॥
रुकस्त ना हुआ कभी, और न मंजिल पायी उसने ।
कारवां भी न बन सका, और ना ही दुवा किसी की पायी उसने ॥
दोस्त मेरे,
बिछडने का गम तो, खैरात में ही पाया है तुमने ।
वजूद की बात है, कौन पार हुआ और कौन धस गया ॥
-अनुप